सस्ता इंटरनेट: सुविधा या दुविधा
संसाधनों का सुनियोजित प्रयोग मानव जीवन को सरल व सुगम बनाता है। लेकिन जब यही संसाधन निशुल्क या अत्यधिक सस्ते हो जाते हैं तो यह मानव जीवन ही नहीं अपितु राष्ट्र के लिए भी घातक सिद्ध हो जाते हैं। 2014 में जिओ कंपनी द्वारा सस्ते दिये गये मोबाइल डाटा के कारण लोगों ने जमकर इंटरनेट यूज बढ़ाया। पहले तक जो व्यक्ति 2GB डाटा महीने भर चलाता था वही व्यक्ति 2GB डाटा प्रतिदिन खर्च करने लगा।
अराजक तत्वों द्वारा भी सस्ते इंटरनेट का प्रयोग अफवाह, हिंसा, सियासत, फेंक न्यूज, धार्मिक उन्माद, जातीय संघर्ष आदि फैलाने के लिए होने लगा।
नतीजा घर परिवार को समय देने, स्वस्थ शरीर के लिए योगाभ्यास करने, घूमने फिरने या अन्य क्रियाओं में व्यस्य रहने वाला व्यक्ति दिन में औसतन 7 से 8 घंटे इंटरनेट पर बिताने लगा। बाजार में घूम फिर कर वस्तुएं लाने वाले व्यक्ति बड़ी-बड़ी ऑनलाइन कंपनियों से घर बैठे ही वस्तुएं खरीदने लगे। जिससे 90% आबादी को आजीविका उपलब्ध कराने वाली मार्केट व्यवस्था ध्वस्त होने लगी है। शारीरिक श्रम की जगह गलत दिशा में मानसिक श्रम बढ़ने से व्यक्ति का शरीर भी भिन्न-भिन्न रोगों का आश्रय स्थल बनने लगा है।
अतः सरकार को सस्ते इंटरनेट डाटा के स्थान पर सस्ती कॉलिंग डाटा पर विचार अथवा सीमित इंटरनेट डाटा के प्रयोग का विकल्प तैयार करना चाहिए। ताकि सस्ता इंटरनेट युवा शक्ति के लिए सुविधा की वजह दुविधा ना बने।
~पारस परमश्रेष्ठ, मेरठ।
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