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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

खालिस्तानी आतंक ही है करीमा बलूच की हत्या का कारण


 बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए लड़ रही मानवाधिकार कार्यकर्ता “करीमा बलूच” की टोरंटोकनाडा में हत्या बहुत कुछ उजागर कर रही है। करीमा बलूच BBC के “वुमन-2016 सर्वे में 100 प्रभावशाली महिलाओं में शामिल की गई थीं। वो बलूचिस्तान की आज़ादी और पाकिस्तान के द्वारा वहाँ किये जा रहे मानवाधिकार उलंघन के विरुद्ध मुखर आवाज़ उठा रहीं थी। करीमा बलूच 2016 से अपने पति के साथ कनाडा में रह रहीं थी और उन्हें लगातार धमकियाँ भी मिल रहीं थीं| पकिस्तान ने करीमा बलूच की हत्या करके उनकी आवाज़ को दबाने का प्रयास| इससे पहले एक और बलूचिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार “सज्जाद हुसैन” की भी स्वीडन में हत्या कर दी गयी थी| कनाडा में इस्लामिक कट्टरपंथियों का नेटवर्क इतना मजबूत नही हैलेकिन खलिस्तानी नेटवर्क वहाँ 1960 से ही लगातार पोषित होता रहा है। और पूर्ण सम्भावना है कि पकिस्तान ने करीमा बलूच की हत्या में अपने खालिस्तानी नेटवर्क का ही उपयोग किया हो|

कनाडा में स्थिति गंभीर होती जा रही है| आज स्थिति ये है कि कनाडाई प्रधानमंत्री “जस्टिन टेड्रुआ”, खालिस्तानियों की कठपुतली की तरह काम कर रहें है। जस्टिन टेड्रुआ के खलिस्तानी प्रशंशक उन्हें जस्टिन सिंह टेड्रुआ भी बोलते हैं। 1896 से सिक्खों ने कनाडा में बसना शुरू किया था। आज वहाँ लाख से ज्यादा सिक्ख नागरिक हैं। कनाडा की कुल जनसँख्या का ये मात्र 1.5% होता है लेकिन राजनैतिक रूप से ये वोटबैंक कितना प्रभावी हो चूका है इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कनाडाई संसद में सिक्खों का प्रतिनिधित्व 5% है और वहाँ के मंत्रिमंडल में 8% से भी ज्यादा| किसी अन्य देश में भारतवंशियों का बढ़ता प्रभाव एक गौरव का विषय हो सकता है| परन्तु कनाडाई सिक्खों के मामले में ये चिंता का विषय अधिक हो जाता है| क्योंकि वहाँ के सिक्खों पर खालिस्तानी कट्टरपंथियों का बड़ा प्रभाव है| वहाँ के राजनैतिक दल भी अब सिक्खों को लुभाने के लिए खालिस्तान नाम के दिवास्वप्न का भावनात्मक रूप से खूब उपयोग करते हैं| कनाडा में खालिस्तानी विचार सिक्खों में इतना प्रभावी हैं कि कनाडा के प्रमुख राजनैतिक दल न्यू डेमोक्रटिक पार्टी के प्रमुख “जगमीत सिंह”, जो पिछले चुनाव में जस्टिन के मुख्य प्रतिस्पर्धी और प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे, वो भी एक खलिस्तानी समर्थक है।

कनाडा में सिक्खों को खालिस्तान के नाम पर ये बताया जा रहा है की वो हिन्दुओ से अलग संस्कृति हैं। कनाडा में हिन्दुओ पर सिक्खों के द्वारा हमले की घटनाएँ भी देखने को मिल रहीं हैं| 2013 में भी एक हिन्दू मंदिर पर सिक्ख युवको ने हमला किया था, इस प्रकार की घटनाएँ वहाँ सामान्य होती जा रहीं हैं| आज खालिस्तान को पाकिस्तान का ही पोषण नही मिल रहा बल्कि अब कनाडा के रूप में एक ऐसी ज़मीन भी मिल गयी हैजहाँ से खालिस्तानी अपनी गतिविधि पुनः तेज़ कर सकते हैं। पकिस्तान ने तो खालिस्तान के नाम पर सिक्ख युवाओं को भारत के विरुद्ध हथियार के रूप में उपयोग किया है लेकिन कनाडा के प्रधानमन्त्री खुद खालिस्तानियो का मोहरा बन चुकें हैं| 2018 में कनाडा में बढ़ते खालिस्तानियों के प्रभाव को लेकर कनाडाई सुरक्षा एजेंसियों के द्वारा दी गयी एनुवल रिपोर्ट में भी चिंता जाहिर की थी लेकिन कनाडा के प्रधानमंत्री ने उस रिपोर्ट को ही वापस ले लिया| भारत के साथ कनाडा की विदेश नीति पर खालिस्तानियों का पूरा प्रभाव रहता है| 

कनाडा में सिक्ख तुस्टीकरण की निति के कारण खालिस्तान के विचार को लगातार बढ़ावा देकर कनाडा सरकार कनाडा को अशांति के मार्ग पर ले जा रही है| इस तरह कनाडा में खालिस्तानी आतंकियों के साथ-साथ पकिस्तान के द्वारा प्रायोजित इस्लामिक आतंकियों की पकड़ भी मजबूत हो रही है|

करीमा बलूच की कनाडा में हत्या साफ़ इशारा करती है कि कनाडा में अब खालिस्तानी और इस्लामिक आतंकी अपनी पकड मजबूत कर चुकें हैं| वहीँ भारत के लिये भी ये चिंता का विषय है क्योंकि पकिस्तान और कनाडा के समर्थन से खालिस्तानी लगातार पुन: पंजाब को अस्थिर करने का प्रयास कर रहें हैं| कनाडाई और ब्रिटेन के सिक्खों में खालिस्तान के प्रचार को लेकर पाकिस्तान 1971 से लगातार षड्यंत्र कर रहा है। करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के समय से ही ये दिखाई दे रहा था कि पकिस्तान इसका उपयोग भी खालिस्तान के अंगारे फिर से सुलगाने में कर रहा है। कश्मीर में अब पाकिस्तान उतना सफल नही हो पा रहा है तो उसने अपनी ताकत पुनः पंजाब को अस्थिर करने के लिए झोंकनी शुरू कर दी है। पकिस्तान ने “जस्टिस फॉर सिक्ख” के रूप में खालिस्तान के विचार को एक नए अवतार में पेश किया है|

कनाडा में बढ़ता खालिस्तानियों और इस्लामिक आतंकियों के प्रभाव से भारत को इतनी हानि नहीं है जितनी हानि कनाडा को है| अन्तराष्ट्रीय समुदाय को भी इस मुद्दे पर गंभीरता दिखानी होगी क्योंकि कनाडा में बढ़ता आतंकी प्रभाव अमेरिका और यूरोप दोनों को निशाने पर ले लेगा|

 

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