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गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020

वातावरण शुद्धि के लिए वैदिक हवन है सर्वोत्तम

वैदिक हवन अर्थात् अग्निहोत्र के माध्यम से प्रज्वलित अग्नि में घी और सामग्री से आहुति प्रदान करना। इस वैज्ञानिक प्रक्रिया के माध्यम से वातावरण की शुद्धि होती है, जिसके लिए वेदों में बार-बार यज्ञ करने पर बल दिया गया है। लेकिन आधुनिक सभ्य मानव के पास इतना समय नहीं कि वह यज्ञ कर सके।


     इसीलिए उसने सस्ता और शार्टकट रास्ता ढूंढ लिया है कि अगरबत्तियां जलाकर भगवान को प्रसन्न कर लिया जाए और वातावरण की भी शुद्धि हो जाए। लेकिन यह विधि उचित नहीं है क्योंकि शोधकर्ताओं का दावा है कि अगरबत्ती से निकलने वाला धुआँ सिगरेट से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। अध्ययन के अनुसार सुगन्धित अगरबत्ती के धुएं में म्यूटाजेनिक, जीनोटाक्सिक, साइटोटाक्सिक जैसे विषैले तत्व होते है, जिनसे कैंसर होने का खतरा रहता है।


    दूसरा अगरबत्ती के हानिकारक धुएं से शरीर में मौजूद जीन का रूप परिवर्तित हो जाता है। जो कैंसर और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां होने की पहली स्टेज है और जेनेटिक म्यूटेशन से डीएनए में भी परिवर्तन हो सकता है।


     आज हर मन्दिर में, दुकान में, घर में पूजा पाठ में, धार्मिक अनुष्ठान में किसी चीज के उदघाटन के अवसर पर बिना किसी झिझक के अगरबत्तियां सुलगाई जाती है । इसका परित्याग कर के इसके स्थान पर गौधृत का दीपक जला ले तो ज्यादा अच्छा रहेगा। क्योंकि १० ग्राम गौधृत को दीपक में जलाने से अथवा यज्ञ में आहुति डालने से १ टन प्राण वायु उत्पन्न होती है तथा उससे वायु मण्डल में एटोमिक रेडिएशन का प्रभाव कम हो जाता है। " गाय के घी में वैक्सीन एसिड, ब्यूटिक एसिड वीटा कैरोटीन जैसे तत्व पाए जाते हैं जो शरीर में पैदा होने वाले कैंसरीय तत्त्वों से लड़ने की क्षमता रखते है।


‌ यज्ञ (हवन) एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है और ये अगरबत्तियां जलाना अवैज्ञानिक हानिकारक तरीका है। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने यज्ञ करने पर बल दिया है न कि अगरबत्ती सुलगाने पर। वे सत्यार्थ प्रकाश के तृतीय समुल्लास में लिखते हैं - प्रत्येक मनुष्य को सोलह- सोलह आहुति और छ: - छ: ग्राम माशे धृतादि एक-एक आहुति का परिमाण न्यून से न्यून चाहिए और जो इससे अधिक करें तो बहुत अच्छा है। घी में ही वह सामर्थ्य है जो दुर्गन्धित वायु को बाहर निकाल सकती हैं। कैंसरकारक सस्ते नुस्खे न अपना कर यज्ञ की ओर लौटने से ही कल्याण है


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