मन की बात/मन का विचार~रविंद्र हांडा :
क्या इंसान सुधरेगा ?
क्या अब भी उसको अकल आएगी ?
क्या सरकारें खुद कुछ सीख लेंगी ?
क्या शासकीय अधिकारी अपनी- अपनी जिम्मेवारी संभालेंगे ?
ये विचार टीवी चैनलों पर स्वच्छ हवा, जंगल के जानवर शहरों में आने, पंछियों का चहचहाना लौट आने की खबरे देखने के बाद मन मे आते है. लोगों के ना थूकने से और कचरा ना फेंकने के कारण सड़के व गलियां साफ हो गई, वातावरण साफ हो गया, नदिया स्वच्छ हो गई, गंगा निर्मल हो गई आदी आदी.
सवाल यह है कि वातावरण इस स्वच्छता का अनुभव हम कितने दिन औंर कर सकते है ?
आज हम इतना आनंद ले रहे हैं कि प्रकृति ने अपना खूबसूरत रंग दिखा दिया. यह स्थाई नहीं है न. जिस दिन लॉक डाउन खुला. यह सब पहले जैसा या उससे भी खराब हो जाएगा. फिर वही भीड़ - भाड़. फिर वही गंदगी. फिर वही प्रदूषण फिर वही गंगा मैली.....
इंसान - कुदरत ने थोड़ा सा अपना प्रकोप दिखाया तो तेरी यह दशा हो गई. क्या तू चाहता है कि प्रलय ही आये इस धरती में नया जीवन पाया है और इंसान ने इसको खुद देखा है.आने वाली पीढ़ियों के लिए हम कुछ अच्छा करके जाएंगे या उसके लिए प्रलय का इंतजाम करके जाएंगे. आज प्रकृति के संदेश 'जियो और जीने दो' को नहीं समझेंगे तो इंसान का जीवन हर हालत में खत्म हो जाएगा. अगर आज हम जो झेल रहे हैं. मजबूरन हमें कुछ बातों को त्यागना पड़ रहा है. वो ही हम अपने आदतों को सुधार लें, तो मानव जाति का उद्धार हो जाएगा
परंतु इसके लिए हर इंसान को अपना -अपना रोल अदा करना पड़ेगा. प्रशासनिक अधिकारीयों को कुछ उग्र होना पड़ेगा. हर नेता, अभिनेता को अपनी-अपनी जिम्मेवारी समझनी पड़ेगी. हर सरकार को कुछ सख्त फैसले लेने पड़ेंगे -प्रकृति सुधार के लिये.
कृपया अब तो चेतो. यह धरा स्वर्ग है, इसे नर्क मत बनाओ. प्रकृति हमेशा संतुलित नहीं रहती. उसका प्रकोप समस्त मानव जाति को खत्म कर देगा. कृपया सब मिलकर एक नया विश्व बनाने की चेष्टा करें. नव निर्माण करे. आत्म-चिंतन करें. हम कहां गलत थे ,उसको ठीक करें और आने वाली पीढ़ियां हम से प्रेरणा ले ना कि दोषारोपण करें. कृपया विचार करें.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें