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बुधवार, 6 मई 2020

जाया न जाये जज्बा

जाया न जाये जज्बा


हंदवाड़ा शहादत का सबक सिखाएं पाक को पाक सत्ताधीशों की निर्लज्जता व निकृष्ट सोच का पता इस बात से ही चलता है कि जब पूरी मानवता कोरोना संकट से जूझ रही है, वह राज्य पोषित आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा इलाके में कर्नल आशुतोष शर्मा, मेजर अनुज सूद, नायक राजेश व लांस नायक दिनेश तथा पुलिस सब-इंस्पेक्टर काजी पठान का सर्वोच्च बलिदान देश को ऐसी टीस दे गया, जिसे आसानी से नहीं भुलाया जा सकता। इन वीरों को इसलिये अप्रतिम शौर्य का परिचय देते हुए बलिदान देना पड़ा क्योंकि वे आतंकियों के कब्जे से बंधक नागरिकों को सुरक्षित बचाना चाहते थे। इसके बावजूद यह हमारी रणनीति की भी चूक है कि हमारे वीर सैनिक आतंकियों के बुने जाल में फंस गये। हम बड़े खतरे का आकलन नहीं कर सके। खैर, यह जांच के बाद ही स्पष्ट होगा कि इन अधिकारियों का संपर्क कैसे टूटा और कैसे वे आतंकवादियों के जाल में फंसे। इसी बीच सोमवार को घात लगाकर किये गए हमले में तीन सीआरपीएफजवानों की मौत ने हंदवाड़ा के जख्म और गहरे कर दिये। यह पाकिस्तान की हताशा का ही नतीजा है कि एलओसी पर संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खत्म होने और केंद्रशासित राज्य के बनने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तरह-तरह का प्रलाप काम न आने पर अब पाक इस मुश्किल दौर में आतंकवादियों को कश्मीर में भेज रहा है। इस साल अब तक पाकिस्तान 650 बार सीज फयर का उल्लंघन कर चुका है। हालांकि, अप्रैल माह में सेना व सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों के सफये के सफल अभियान चलाये और विभिन्न मुठभेड़ों में 28 चरमपंथियों को मार गिराया।


एलओसी पर केरन सेक्टर के हादसे को अलग परिस्थितियों की वजह से छोड़ दें तो अप्रैल में हुई बीस मुठभेड़ों में सुरक्षाबलों को कोई क्षति नहीं हुई। इसके बावजूद कि पाक अब ज्यादा प्रशिक्षित आतंकवादियों को घाटी में भेज रहा है। हंदवाड़ा की घटना में मारे गये पाकिस्तानियों में लश्कर का कमांडर हैदर शामिल है।


घटना के बाद सेना प्रमुख एमएम नरवणे ने पाक को चेताया है कि सीज फयर तोड़ने और आतंक फैलाने के लिए पाक को सबक सिखाया जायेगा। साथ ही इस घटनाक्रम को वैश्विक जोखिम की संज्ञा दी है। उन्होंने माना कि पाक पोषित आतंकवादी नागरिकों को निशाना बनाकर विश्व में इसे आजादी का प्रोपेगेंडा के रूप में दिखाना चाहते हैं। निरूसंदेह जब तक पाकिस्तान राज्य पोषित आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता, उसे उचित जवाब देना जरूरी है। ऐसा इसलिए?भी है कि पाक आतंकवाद को राज्य नीति के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। इसके बावजूद मुठभेड़ में हुई हाई प्रोफाइल क्षति कई सवालों को भी जन्म देती है। टीम का संचार तंत्र का विफल होना, उन्हें समय पर पीछे से मदद का न मिलना कहीं न कहीं आतंक विरोधी मुहिम में किसी खामी की ओर भी इशारा करता है। ऐसा कैसे हुआ जब 21 आर.आर. के सीओ कर्नल आशुतोष शर्मा ऐसे अभियानों में दक्ष माने जाते थे और दो बार उन्हें सम्मान भी मिले थे। हमारी कोशिश हो कि इन वीरों का बलिदान व्यर्थ न जाये। साथ ही यह भी मंथन करना होगा कि हमें हंदवाड़ा में इतनी बड़ी क्षति क्यों उठानी पड़ी। चिंता की बात है कि कश्मीर में आतंकवाद का सिलसिला तमाम प्रयासों के बावजूद थमा नहीं है। ऐसे में कोशिश होनी चाहिए कि भविष्य में ऐसी आतंकरोधी रणनीति बने कि हमारी सेना, अर्धसैनिक बलों व जम्मू-कश्मीर पुलिस को कम से कम क्षति उठानी पड़े। निरूसंदेह ऐसे अभियान बेहद विषम परिस्थितियों में चलाये जाते हैं। जहां भौगोलिक परिस्थितियां जटिल हैं, वहीं आतंकवादियों को भी स्थानीय समर्थन भी मिलता रहा है और मुठभेड़ के दौरान पत्थरबाजी जैसी घटनाएं भी सामने आती


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